Kumawat Samaj - कुमावत समाज इतिहास की नजर से || कुमावत समाज की अनमोल विरासत शिल्पकला एवं स्थापत्य कला तथा कुमावत समाज के क्षत्रिय इतिहास पर एक नजर I
Kumawat Samaj - कुमावत समाज इतिहास की नजर से || कुमावत समाज की अनमोल विरासत शिल्पकला एवं स्थापत्य कला तथा कुमावत समाज के क्षत्रिय इतिहास पर एक नजर :-⇉⇉⇉⇉
kumawat एक की भारतीय Hindu bजाति, जिसका परम्परागत कार्य भवन (स्थापत्य, शिल्पकर्म) निर्माण हैं। कुछ लोग अज्ञानतावश kumawat और(प्रजापत) को एक ही समझ लेते है, लेकिन दोनों अलग - अलग जातियां है। होने के कारण अधिकांश लोग नाम के आगे verma शब्द का प्रयोग करते भी करते है। वर्मा का शब्दिक अर्थ भी कुमावत होता ही होता है। कुमावत जाति के कुछ लोग शुरू में शिलपकर्म करते थे, जबकि कुम्हार जाति के लोग मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते हैं। राजस्थान सरकार के अधीन कुमावत समाज का बिरादरी नम्बर 41 ह व् भारत सरकार के अधीन बिरादरी नम्बर 30(बी) है
इंटरनेट/सोशल मीडिया पर क्षत्रिय कुमावत के इतिहास के साथ हो रही अपराधिक छेड़छाड़
ये मुद्दा काफी संवेदनशील हो चूका है,अगर इस पर रोक नही लगाई गई तो समाज में अनावश्यक वैमनष्यता बढ़ेगी, कोर्ट कचहरी या फिर हिंसक संघर्ष भी हो सकता है, क्षत्रिय कुमावत समाज अपने पुरखों के गौरव और स्वाभिमान पर ऊँगली उठाने वालों और उनका इतिहास विकृत करने वालों को बर्दाश्त नहीं करेगा | ये सब षड्यंत्र नव गठित अखिल भारतीय क्षत्रिय कुमावत मंच, जयपुर (यह मंच क्षत्रिय कुमावत समाज द्वारा अधिकृत नहीं है) द्वारा रचा जा रहा है रही है, इस संदर्भ में मंच के पदाधिकारियों से वार्ता भी की गई, उनके द्वारा स्वीकार भी किया गया की प्रस्तुत इतिहास प्रमाणिक नहीं है, एवं आश्वाशन भी दिया गया, की आपत्तिजनक तथ्य हटा लिए जायेंगे, किन्तु अभी तक कोई सुधार नहीं किया गया| अखिल भारतीय क्षत्रिय कुमावत महासभा, जयपुर के अध्क्षय मोहदय द्वारा भी विरोध जताते हुए कड़े षड्यंत्र-कर्ताओ की कड़ी निंदा की है, किंत इनके आचरण में कोई सुधार नहीं आया |
इस मंच के द्वारा चारण/ भाटों की वंशावलियों से मनघडन्त इतिहास बना कर क्षत्रिय कुमावतों को अपने कुतर्को से राजपूतो की नातरयत संतान सिद्ध करने का प्रयास किया जा रहा है | इन्ही फर्जी इतिहासकारों के कुतर्कों का लाभ उठाकर कई वर्णसंकर जातियां जिनका कोई इतिहास नही है वे लोग क्षत्रिय कुमावत जाति में घुसने का षड्यंत्र कर रहे हैं, इस दुष्कर्म में हमारे समाज के कुछ महत्वकांशी नवयुवक जो पदों के लालच या अन्य स्वार्थ सिद्धि के लिए इस मंच का समर्थन कर रहे है, एवं समाज के नवयुवको को गुमराह कर रहे है| इस मंच के द्वारा जैसलमेर के राजपूत भाटी राज वंश एवं राजपूत वीरांगनाओ को, जिनके गौरवशाली इतिहास पर सम्पूर्ण भारत वर्ष को गर्व है, उन महापुरुष योद्धाओं को भी बड़ी बेशर्मी से शर्मशार किया जा रहा है |
मेरे सम्मानीय बन्धुओ जब आरक्षण का कटोरा हाथ में होता है तब तो यह वर्ग जातियां कुम्हार/ प्रजापत / बांदा खुमार / चाण्डाल और न जाने क्या क्या बन जाते है | अपने पूर्वजों को भी पिछड़ा दलित गरीब पता नहीं क्या - क्या बताते है और जब वंश वर्ण और कुल की बात आती है तो ये जातियां क्षत्रियों राजपूतो को अपना पूर्वज बताने लगते हैं।
आप विदित है की अहीर पिछले सिर्फ 90-100 साल से जबरदस्ती चन्द्रवंशी वासुदेव श्री कृष्ण को अपना पूर्वज कहकर यादव लिखने लगे,ग्वाल,गोप,अहीर,अहर,कमरिया,घोसी ,जैसी कई अलग अलग जातियों ने मिलकर सन 1915 के आसपास खुद को अचानक से यादव घोषित कर दिया जबकि यादव राजपूतों का एक कुल है जिसके करौली के जादौन, जाधव ,जैसलमेर के भाटी ,गुजरात के जाडेजा और चुडासमा छोकर राजपूत असली वंशज है ।अनेको दलित और यूपी के मुराव मुराई जाति के लोग 40 साल से मौर्य वंश के टाइटल यूज़ करने लगे है जबकि मौर्य वंश सूर्यवंश के महाराज मान्धाता के छोटे भाई मंधात्री के वंशज है|
जाटों ने तो हद ही कर दी जाटलैंड डॉट कॉम के माध्यम कभी वो हिटलर को जाट बताते हैं तो कहीं हनुमान जी को,कहीं खुद को शक कुषाण बताते हैं तो उसी आर्टिकल में खुद को श्रीकृष्ण ,अर्जुन का वंशज घोषित कर देते हैं,,,,,, और जब आरक्षण की बात हुई तो अपने आप की तुलना निम्न जाति से भी करने लगे ऐसे कई उद्धरण है, सभी का जिक्र यहाँ करना उचित नहीं है|
कुम्हार/ प्रजापति जाति को जब अन्य पिछड़ा वर्ग मै शामिल किया गया तो यह सब खुम्हार/ कुम्भार/ प्रजापति मारू कुम्बार इत्यादि बने हुए थे | समस्त राजकीय रिकार्ड्स स्कूल प्रमाण पत्र, राशन कार्ड, जमा बंदी, जाति प्रमाण -पत्र सभी उपरोक्त जाति के नाम से बना कर आरक्षण का लाभ लेते रहे, १९७२ से छपी विवादित इतिहास की पुस्तक पता नहीं कहा छुपी रही | किन्तु कुमावत जाति को भी अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल कर लिए जाने के बाद से इनका मोह कुमावत के प्रति जागा एवं इस इतिहास की बैशाखी के सहारे अब यह दावा करने लगे की हम भी क्षत्रिय कुमावत है, किन्तु भूलवश एवं अशिक्षा के कारण अब तक समस्त रिकार्ड्स में कुम्हार / प्रजापति लिखते आये है | अधिकांश ग्रामीण इलाकों में रहते है, जयादा पढ़े लिखे नहीं होने के कारण दूसरों के कहे अनुसार कुम्हार/ प्रजापत लिखते आये है |
समस्त कुम्हार/ प्रजापति बंधू ऐसा नहीं कर रहे है, कुम्हार / प्रजापति सु-स्थापित जाति है समाज मे इसकी प्रतिष्ठा है और वे गर्व से कहते है हम कुम्हार प्रजापति ब्रम्हा की संतान है | कुमावत समाज से इनके अच्छे सम्बन्ध है, अपने राजनीतिक उदेश्यो की पूर्ति हेतु एक मंच भी बना रखा है "कुमावत - कुम्हार एकता " दोनों जातियों मे कोई विवाद नहीं है परस्पर दोनों एक -दूसरे का सम्मान करते है|किन्तु आपस मे रिश्ते दारी नहीं है | कुछ ऐसे कुम्हार / प्रजापति / मारू कुम्बार ऐसे भी है, जो अपनी जाति को लेकर हीन भावना से ग्रसित है, अपने पूर्वजो की परम्परा को निभाने का सामर्थ्य इनमे नहीं है, जिससे कुंठित होकर अपने आप को क्षत्रिय राजपूतो से जोड़ने के लिए राजपूतो का वंशज घोषित करते हुए "मारू- कुम्बार / कुंभार का इतिहास " पुस्तक का विमोचन किया है | दावा किया है की मारू- कुम्बार / कुंभार को समय के साथ- साथ उच्चारण में कुमावत कहा जाने लगा वास्तव मे हम राजपूत ही है |
उपरोक्त तथ्यों के प्रमाण स्वरूप यह स्व.श्री राव हनुमानदान चण्डीसा द्वारा 1972 में लिखित एक पुस्तक “ मारू- कुंबार इतिहास" को आधार बना कर गुरु गरवा जी को को क्षत्रिय कुमावत जाति का संस्थापक बनाने पर उतारू हैं | चूँकि राव श्री हनुमानदान जी का देहावसान हो चुका है और मृत महानुभावों का आदर करने की प्राचीन भारतीय परम्परा रही है इसलिए मैं उनके लेखन से असहमत होते हुए महज इतना कहूँगा कि उक्त पुस्तक महज एक कल्पना है जो कही के ईंट कही का रोड़ा लेकर निहित स्वार्थ सिद्धि के लिए लिखी गई है|
स्व.श्री राव हनुमानदान चण्डीसा का परिचय भी आपको करना उचित होगा, यह जाति से राव थे| राव को जागा , भाट इत्यादि नामों से भी जाना जाता है | ये लोग वंशावली लिखने का काम करते है | वर्ष में एक बार यजमान के पास जाते है, परिवार में कोई नया जन्म, मृत्यु एवं परिणय होता है उसका अंकन करते है | राव पिंगल, संस्कृत एवं प्राकृत भाषा में पोथी लिखते है, जिसे ये खुद ही पढ़ सकते है| पीढ़ी दर पीढ़ी ये चलता आता है | पिछली पीढ़ियों के नाम सुनाते है एवं यजमान से पारितोषिक पाते है यही इनका जीवन यापन का साधन होता है| राव हनुमानदान चण्डिसा के पूर्वज जैसलमेर राज परिवार के राव रहे है जैसा की लेखक ने दावा किया है |
इस पुस्तक (“ मारू- कुंबार इतिहास") का विशद अध्ययन करने पर मैंने पाया कि लेखक ने अपने इतिहास के समर्थन में स्वयं स्वीकार किया है (पृष्ठ संख्या ८० ) की इस इतिहास व् गरवा जी के जीवन चरित्र की कुछ बाते हमारी बहियों में दर्ज है, कुछ पुस्तकों में लिखी हुई है, एवं कुछ जन -श्रुति के आधार पर लिखी हुई है, एवं कविताएं मेने अपनी प्रतिभानुकुल लिखी है |
आगे लिखा है की इस इतिहास में मेने जो राजा केहर की वार्ता लिखी है वह सारी वार्ता एक पुरानी संतो की लिखी हुई इतिहास की पुस्तक पर आधारित है | वह पुस्तक गाव कपूरिया में बाबाजी श्री मुलपुरी जी के पास सुरक्षित है | राजा केहर की वार्ता की कुछ घटनाएं मेने बाबा के मुख से भी सुनी है | इसलिए में बाबा मुलपुरी को नमस्कार करता हू| लेखक ने यह उल्लेख नहीं किया की बाबाजी के पास उपलब्ध पुस्तक का नाम क्या था, उस पुस्तक की प्रमाणिकता क्या थी | यहाँ ये इसलिए आवयशक था की जिस पुस्तक को आधार बनाया जा कर इतिहास लिखा जा रहा है कम से कम उस पुस्तक के शीर्षक एवं लखेक का उल्लेख करना तो आवयशक था | लेखक ने यही भी कहा है की कुछ बाते मेने जन-श्रुति एवं बाबाजी के मुख से सुन कर लिखी है | मतलब निश्चित तौर पर कुछ नहीं है कुछ गलत या अप्रमाणिक पाए जाने पर आप उसको दोषी करार नहीं दे सकते, क्योकि उसने तो किसी से सुना था |
इस इतिहास में लेखक ने कई घटनाओं का तिथि सहित विस्तार से उल्लेख किया है | कई पुस्तकालयों और संग्रहकर्ताओं की धूल छानने के बाद मुझे समकालीन इतिहास की पुस्तकें मिली कुछ गूगल पर भी उपलब्ध है | उपलब्ध साहित्य / इतिहास इत्यादि का अध्यन कर मेने पाया की कोई भी घटना इस पुस्तक में उल्लेखित कोई भी घटना से मेल नहीं खाती है |
कुछ मह्व्त्पूर्ण घटनाओं का विश्लेषण मे यहाँ करूँगा अन्य घटनाओं का विश्लेषण मे आगामी लेख मे करूँगा, जिससे यह स्पष्ट हो जायेगा की यह इतिहास पूर्णतया काल्पनिक एवं मनघडन्त है किसी निहित स्वार्थ सिद्धि के लिए लिखा गया है इतिहास से इसका कोई सम्बन्द नहीं है| अखिल भारतीय क्षत्रिय कुमावत महासभा, कुमावत समाज की सबसे पुरानी एवं बड़ी सभा है, जिसके वर्तमान अध्क्षय मोहदय ने भी इस इतिहास का खंडन किया है एवं इस पुस्तक को कुमावत समाज को बदनाम किये जाने की साजिश करार दिया है |
यह इतिहास यह सिद्ध करना चाहता है की "मारू -कुम्बार " कैसे बने? इसके लिए लेखक लिखते है की गरवा जी का जन्म क्षत्रिय (राजपूतो) के वंश में भाटी राजपूतो के कुल में जैसलमेर में हुआ था | विक्रम संवत १२१२ में जैसलमेर के राजा जैसल जी भाटी ने जैसलमेर बसाया था | इसी खानदान में गाडण जी नाम के भाटी हुए थे | गाडण जी के पांच पुत्र हुए थे | १ गरवा जी २ अहदे जी ३ तेजसी जी ४ खिखि जी ५ भेहुंगी जी | गाडण जी की वंश परम्परा इस प्रकार से है :- भाटी भिडकमल => बोरावड़ जी=> श्री पाल जी => जोजा जी => डोडा जी => भजा जी => कंवरपाल जी => गाडण जी => गरवा जी | गरवा जी का जन्म विक्रम संवत १२८५ माघ सुदी १४ वार शुक्रवार को हुआ था| अर्थार्थ ई0सन् 1227-28 अगले अनेक पृष्ठों पर पुनः उल्लेख किया गया है की गरवा जी जैसलमेर राज परिवार के वंशज है| निचे दिए गए लिंक पर जाकर देखे जिसमे जैसलमेर राज वंश का पूर्ण विवरण है
kumawat एक की भारतीय Hindu bजाति, जिसका परम्परागत कार्य भवन (स्थापत्य, शिल्पकर्म) निर्माण हैं। कुछ लोग अज्ञानतावश kumawat और(प्रजापत) को एक ही समझ लेते है, लेकिन दोनों अलग - अलग जातियां है। होने के कारण अधिकांश लोग नाम के आगे verma शब्द का प्रयोग करते भी करते है। वर्मा का शब्दिक अर्थ भी कुमावत होता ही होता है। कुमावत जाति के कुछ लोग शुरू में शिलपकर्म करते थे, जबकि कुम्हार जाति के लोग मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते हैं। राजस्थान सरकार के अधीन कुमावत समाज का बिरादरी नम्बर 41 ह व् भारत सरकार के अधीन बिरादरी नम्बर 30(बी) है
इंटरनेट/सोशल मीडिया पर क्षत्रिय कुमावत के इतिहास के साथ हो रही अपराधिक छेड़छाड़
ये मुद्दा काफी संवेदनशील हो चूका है,अगर इस पर रोक नही लगाई गई तो समाज में अनावश्यक वैमनष्यता बढ़ेगी, कोर्ट कचहरी या फिर हिंसक संघर्ष भी हो सकता है, क्षत्रिय कुमावत समाज अपने पुरखों के गौरव और स्वाभिमान पर ऊँगली उठाने वालों और उनका इतिहास विकृत करने वालों को बर्दाश्त नहीं करेगा | ये सब षड्यंत्र नव गठित अखिल भारतीय क्षत्रिय कुमावत मंच, जयपुर (यह मंच क्षत्रिय कुमावत समाज द्वारा अधिकृत नहीं है) द्वारा रचा जा रहा है रही है, इस संदर्भ में मंच के पदाधिकारियों से वार्ता भी की गई, उनके द्वारा स्वीकार भी किया गया की प्रस्तुत इतिहास प्रमाणिक नहीं है, एवं आश्वाशन भी दिया गया, की आपत्तिजनक तथ्य हटा लिए जायेंगे, किन्तु अभी तक कोई सुधार नहीं किया गया| अखिल भारतीय क्षत्रिय कुमावत महासभा, जयपुर के अध्क्षय मोहदय द्वारा भी विरोध जताते हुए कड़े षड्यंत्र-कर्ताओ की कड़ी निंदा की है, किंत इनके आचरण में कोई सुधार नहीं आया |
इस मंच के द्वारा चारण/ भाटों की वंशावलियों से मनघडन्त इतिहास बना कर क्षत्रिय कुमावतों को अपने कुतर्को से राजपूतो की नातरयत संतान सिद्ध करने का प्रयास किया जा रहा है | इन्ही फर्जी इतिहासकारों के कुतर्कों का लाभ उठाकर कई वर्णसंकर जातियां जिनका कोई इतिहास नही है वे लोग क्षत्रिय कुमावत जाति में घुसने का षड्यंत्र कर रहे हैं, इस दुष्कर्म में हमारे समाज के कुछ महत्वकांशी नवयुवक जो पदों के लालच या अन्य स्वार्थ सिद्धि के लिए इस मंच का समर्थन कर रहे है, एवं समाज के नवयुवको को गुमराह कर रहे है| इस मंच के द्वारा जैसलमेर के राजपूत भाटी राज वंश एवं राजपूत वीरांगनाओ को, जिनके गौरवशाली इतिहास पर सम्पूर्ण भारत वर्ष को गर्व है, उन महापुरुष योद्धाओं को भी बड़ी बेशर्मी से शर्मशार किया जा रहा है |
मेरे सम्मानीय बन्धुओ जब आरक्षण का कटोरा हाथ में होता है तब तो यह वर्ग जातियां कुम्हार/ प्रजापत / बांदा खुमार / चाण्डाल और न जाने क्या क्या बन जाते है | अपने पूर्वजों को भी पिछड़ा दलित गरीब पता नहीं क्या - क्या बताते है और जब वंश वर्ण और कुल की बात आती है तो ये जातियां क्षत्रियों राजपूतो को अपना पूर्वज बताने लगते हैं।
आप विदित है की अहीर पिछले सिर्फ 90-100 साल से जबरदस्ती चन्द्रवंशी वासुदेव श्री कृष्ण को अपना पूर्वज कहकर यादव लिखने लगे,ग्वाल,गोप,अहीर,अहर,कमरिया,घोसी ,जैसी कई अलग अलग जातियों ने मिलकर सन 1915 के आसपास खुद को अचानक से यादव घोषित कर दिया जबकि यादव राजपूतों का एक कुल है जिसके करौली के जादौन, जाधव ,जैसलमेर के भाटी ,गुजरात के जाडेजा और चुडासमा छोकर राजपूत असली वंशज है ।अनेको दलित और यूपी के मुराव मुराई जाति के लोग 40 साल से मौर्य वंश के टाइटल यूज़ करने लगे है जबकि मौर्य वंश सूर्यवंश के महाराज मान्धाता के छोटे भाई मंधात्री के वंशज है|
जाटों ने तो हद ही कर दी जाटलैंड डॉट कॉम के माध्यम कभी वो हिटलर को जाट बताते हैं तो कहीं हनुमान जी को,कहीं खुद को शक कुषाण बताते हैं तो उसी आर्टिकल में खुद को श्रीकृष्ण ,अर्जुन का वंशज घोषित कर देते हैं,,,,,, और जब आरक्षण की बात हुई तो अपने आप की तुलना निम्न जाति से भी करने लगे ऐसे कई उद्धरण है, सभी का जिक्र यहाँ करना उचित नहीं है|
कुम्हार/ प्रजापति जाति को जब अन्य पिछड़ा वर्ग मै शामिल किया गया तो यह सब खुम्हार/ कुम्भार/ प्रजापति मारू कुम्बार इत्यादि बने हुए थे | समस्त राजकीय रिकार्ड्स स्कूल प्रमाण पत्र, राशन कार्ड, जमा बंदी, जाति प्रमाण -पत्र सभी उपरोक्त जाति के नाम से बना कर आरक्षण का लाभ लेते रहे, १९७२ से छपी विवादित इतिहास की पुस्तक पता नहीं कहा छुपी रही | किन्तु कुमावत जाति को भी अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल कर लिए जाने के बाद से इनका मोह कुमावत के प्रति जागा एवं इस इतिहास की बैशाखी के सहारे अब यह दावा करने लगे की हम भी क्षत्रिय कुमावत है, किन्तु भूलवश एवं अशिक्षा के कारण अब तक समस्त रिकार्ड्स में कुम्हार / प्रजापति लिखते आये है | अधिकांश ग्रामीण इलाकों में रहते है, जयादा पढ़े लिखे नहीं होने के कारण दूसरों के कहे अनुसार कुम्हार/ प्रजापत लिखते आये है |
समस्त कुम्हार/ प्रजापति बंधू ऐसा नहीं कर रहे है, कुम्हार / प्रजापति सु-स्थापित जाति है समाज मे इसकी प्रतिष्ठा है और वे गर्व से कहते है हम कुम्हार प्रजापति ब्रम्हा की संतान है | कुमावत समाज से इनके अच्छे सम्बन्ध है, अपने राजनीतिक उदेश्यो की पूर्ति हेतु एक मंच भी बना रखा है "कुमावत - कुम्हार एकता " दोनों जातियों मे कोई विवाद नहीं है परस्पर दोनों एक -दूसरे का सम्मान करते है|किन्तु आपस मे रिश्ते दारी नहीं है | कुछ ऐसे कुम्हार / प्रजापति / मारू कुम्बार ऐसे भी है, जो अपनी जाति को लेकर हीन भावना से ग्रसित है, अपने पूर्वजो की परम्परा को निभाने का सामर्थ्य इनमे नहीं है, जिससे कुंठित होकर अपने आप को क्षत्रिय राजपूतो से जोड़ने के लिए राजपूतो का वंशज घोषित करते हुए "मारू- कुम्बार / कुंभार का इतिहास " पुस्तक का विमोचन किया है | दावा किया है की मारू- कुम्बार / कुंभार को समय के साथ- साथ उच्चारण में कुमावत कहा जाने लगा वास्तव मे हम राजपूत ही है |
उपरोक्त तथ्यों के प्रमाण स्वरूप यह स्व.श्री राव हनुमानदान चण्डीसा द्वारा 1972 में लिखित एक पुस्तक “ मारू- कुंबार इतिहास" को आधार बना कर गुरु गरवा जी को को क्षत्रिय कुमावत जाति का संस्थापक बनाने पर उतारू हैं | चूँकि राव श्री हनुमानदान जी का देहावसान हो चुका है और मृत महानुभावों का आदर करने की प्राचीन भारतीय परम्परा रही है इसलिए मैं उनके लेखन से असहमत होते हुए महज इतना कहूँगा कि उक्त पुस्तक महज एक कल्पना है जो कही के ईंट कही का रोड़ा लेकर निहित स्वार्थ सिद्धि के लिए लिखी गई है|
स्व.श्री राव हनुमानदान चण्डीसा का परिचय भी आपको करना उचित होगा, यह जाति से राव थे| राव को जागा , भाट इत्यादि नामों से भी जाना जाता है | ये लोग वंशावली लिखने का काम करते है | वर्ष में एक बार यजमान के पास जाते है, परिवार में कोई नया जन्म, मृत्यु एवं परिणय होता है उसका अंकन करते है | राव पिंगल, संस्कृत एवं प्राकृत भाषा में पोथी लिखते है, जिसे ये खुद ही पढ़ सकते है| पीढ़ी दर पीढ़ी ये चलता आता है | पिछली पीढ़ियों के नाम सुनाते है एवं यजमान से पारितोषिक पाते है यही इनका जीवन यापन का साधन होता है| राव हनुमानदान चण्डिसा के पूर्वज जैसलमेर राज परिवार के राव रहे है जैसा की लेखक ने दावा किया है |
इस पुस्तक (“ मारू- कुंबार इतिहास") का विशद अध्ययन करने पर मैंने पाया कि लेखक ने अपने इतिहास के समर्थन में स्वयं स्वीकार किया है (पृष्ठ संख्या ८० ) की इस इतिहास व् गरवा जी के जीवन चरित्र की कुछ बाते हमारी बहियों में दर्ज है, कुछ पुस्तकों में लिखी हुई है, एवं कुछ जन -श्रुति के आधार पर लिखी हुई है, एवं कविताएं मेने अपनी प्रतिभानुकुल लिखी है |
आगे लिखा है की इस इतिहास में मेने जो राजा केहर की वार्ता लिखी है वह सारी वार्ता एक पुरानी संतो की लिखी हुई इतिहास की पुस्तक पर आधारित है | वह पुस्तक गाव कपूरिया में बाबाजी श्री मुलपुरी जी के पास सुरक्षित है | राजा केहर की वार्ता की कुछ घटनाएं मेने बाबा के मुख से भी सुनी है | इसलिए में बाबा मुलपुरी को नमस्कार करता हू| लेखक ने यह उल्लेख नहीं किया की बाबाजी के पास उपलब्ध पुस्तक का नाम क्या था, उस पुस्तक की प्रमाणिकता क्या थी | यहाँ ये इसलिए आवयशक था की जिस पुस्तक को आधार बनाया जा कर इतिहास लिखा जा रहा है कम से कम उस पुस्तक के शीर्षक एवं लखेक का उल्लेख करना तो आवयशक था | लेखक ने यही भी कहा है की कुछ बाते मेने जन-श्रुति एवं बाबाजी के मुख से सुन कर लिखी है | मतलब निश्चित तौर पर कुछ नहीं है कुछ गलत या अप्रमाणिक पाए जाने पर आप उसको दोषी करार नहीं दे सकते, क्योकि उसने तो किसी से सुना था |
इस इतिहास में लेखक ने कई घटनाओं का तिथि सहित विस्तार से उल्लेख किया है | कई पुस्तकालयों और संग्रहकर्ताओं की धूल छानने के बाद मुझे समकालीन इतिहास की पुस्तकें मिली कुछ गूगल पर भी उपलब्ध है | उपलब्ध साहित्य / इतिहास इत्यादि का अध्यन कर मेने पाया की कोई भी घटना इस पुस्तक में उल्लेखित कोई भी घटना से मेल नहीं खाती है |
कुछ मह्व्त्पूर्ण घटनाओं का विश्लेषण मे यहाँ करूँगा अन्य घटनाओं का विश्लेषण मे आगामी लेख मे करूँगा, जिससे यह स्पष्ट हो जायेगा की यह इतिहास पूर्णतया काल्पनिक एवं मनघडन्त है किसी निहित स्वार्थ सिद्धि के लिए लिखा गया है इतिहास से इसका कोई सम्बन्द नहीं है| अखिल भारतीय क्षत्रिय कुमावत महासभा, कुमावत समाज की सबसे पुरानी एवं बड़ी सभा है, जिसके वर्तमान अध्क्षय मोहदय ने भी इस इतिहास का खंडन किया है एवं इस पुस्तक को कुमावत समाज को बदनाम किये जाने की साजिश करार दिया है |
यह इतिहास यह सिद्ध करना चाहता है की "मारू -कुम्बार " कैसे बने? इसके लिए लेखक लिखते है की गरवा जी का जन्म क्षत्रिय (राजपूतो) के वंश में भाटी राजपूतो के कुल में जैसलमेर में हुआ था | विक्रम संवत १२१२ में जैसलमेर के राजा जैसल जी भाटी ने जैसलमेर बसाया था | इसी खानदान में गाडण जी नाम के भाटी हुए थे | गाडण जी के पांच पुत्र हुए थे | १ गरवा जी २ अहदे जी ३ तेजसी जी ४ खिखि जी ५ भेहुंगी जी | गाडण जी की वंश परम्परा इस प्रकार से है :- भाटी भिडकमल => बोरावड़ जी=> श्री पाल जी => जोजा जी => डोडा जी => भजा जी => कंवरपाल जी => गाडण जी => गरवा जी | गरवा जी का जन्म विक्रम संवत १२८५ माघ सुदी १४ वार शुक्रवार को हुआ था| अर्थार्थ ई0सन् 1227-28 अगले अनेक पृष्ठों पर पुनः उल्लेख किया गया है की गरवा जी जैसलमेर राज परिवार के वंशज है| निचे दिए गए लिंक पर जाकर देखे जिसमे जैसलमेर राज वंश का पूर्ण विवरण है
कोई टिप्पणी नहीं